कल वह अमेरिका जो विश्व मे सुपर पावर कि हैसियत रखता ता आज ख़ुद आर्थिक संकट के पहाड़ के नीचे दबा हुआ है। इस संकट से उबरने मे अमेरिका को कितना वक्त लगेगा इसका अमेरिका को भी पता नही है।
आज स्तिथि यह है कि बेरोजगारी ७.२ % पहुँच गयी है। २००८ के दिसम्बर माह मे ५ लाख २४ हजार लोग बेरिजगार हुए है। पिछले चार महीने मे ही २० लाख से ज़्यादा लोग बेरोजगारी के काल मे समा गए। अमेरिका के संकट ने न सिर्फ़ अमेरिका को डुबोया है बल्कि सारी दुनिया को उसकी चपेट में ले गया।
आज दुनिया भर के देशों मे आर्थिक मंदी ने हालत बिगाड़ कर रख दी है । भारत के राष्ट्रीय दैनिक ने आज अपने एक लेख मे लिखा है कि साउथ कोरिया मे तो स्तिथि इतनी ख़राब है कि वहां के वैज्ञानिकों ने सफाई कर्मचारी कि नौकरी के लिए आवेदन किया है।
खैर पूरे विश्व मे आर्थिक मंदी के बादल तो अभी छाए है जिसको छटने मे अभी वक्त लगेगा पर इतना तो साफ़ हो गया है कि भारत कि आर्थिक स्तिथि अन्य देशों के मुकाबले मे सुद्रण बनी हुई है। भारत के आर्थिक और बैंकिंग नीती ने देश को आर्थिक रूप से टूटने मे काफ़ी हद तक बचा कर रखा है।
भारत ने पूरी दुनिया को दिखा दिया है कि अर्थव्यवस्था पर बहुत आश्रित नही है। ऐसी स्तिथि के कारण भविष्य मे भारत को विदेशी निवेशकों से भारत मे निवेश कि प्रबल संभावना है। मुझे तो विशवास है कि १०-१५ वर्षों मे भारत पूरे विश्व मे आर्थिक रूप से एक महाशक्ति के रूप मे उभर कर आएगा और विश्व मे एक महाशक्ति के रूप मे उभरेगा। देखिये वक्त के साथ साथ भारत और क्या नए नए आयाम स्तापित करता है।
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